आत्मिक ज्ञान मिलने से संस्कारों में होता है परिवर्तन ..........
हाथरस।
हम शरीर नहीं हैं आत्मा हैं यह ज्ञान तो वेदांगों में मिलता रहा लोग पढ़ते रहे। पढ़ते हुए भी देहअभिमान नहीं टूटा क्योंकि उसका सतत अभ्यास नहीं किया। पहले इंसान कोई भी गलत कार्य करने की मना करता था और कहता था कि गृहस्थी हूँ मेरे भी बाल बच्चे हैं इसलिए यह गलत कार्य नहीं कर सकता। परन्तु आज वह कहते हैं कि गृहस्थी हूँ, बाल बच्चों को पालना पडता है, मंहगाई बहुत है इसलिए सब करते हैं तो मैं भी यह करता हूँ। इन्हीं भावनाओं में अन्तर आने के कारण ही संसार लगातार भ्रष्टाचार की ओर बढ़ता जा रहा है। यह उद्गार रमनपुर नई बस्ती में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय आनन्दपुरी राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र की राजयोग शिक्षिका बी.के.शान्ता बहिन ने व्यक्त किये।
साप्ताहिक पाठ्यक्रम जिसमें आत्मदर्शन, परमात्मदर्शन, सृष्टि चक्र दर्शन, 84 जन्मों की कहानी, राजयोग दर्शन, कर्मदर्शन के पाठ्यक्रम कराये जायेंगे। पहले दिन का पाठ पढ़ाते हुए बी.के. उमा बहिन ने कहा कि शरीर 5 तत्वों का पुतला है इसे चलाने वाली चैतन्य शक्ति आत्मा है जो मन, बुद्धि और संस्कार के माध्यम से संसार रूपी सृष्टि रंगमंच पर कर्म करती है। जैसा वह कर्म करती है उसी प्रकार के संस्कार बनते हैं और उसका परिणाम उसे भुगतना पड़ता है। इसलिए संस्कारों की समझ मिलने पर आत्मा को दिव्य कर्म कराने का पुरूषार्थ करना चाहिए। आत्मा जब सतोगुणी हो जाती है तो उसके काम, क्रोध, अहंकार आदि अवगुण स्वतः निकल जाते हैं। वह नारायणी नशे में रहता है जिसके कारण उसे किसी भी प्रकार के नशे करने की जरूरत नहीं होती। लोगों ने व्यसन मुक्ति कार्यक्रम से प्रेरित होकर अपने तम्बाकू आदि नशे का दान भी दानपात्र में किया।
इस अवसर पर सरस्वती देवी, केशवदेव, विनोद कुमार, कमलेश, रामनिवास, भाग्यश्री, राहुल का सहयोग रहा।
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